लोहे को पिघलाकर कूटती
गड़लिया लोहारिन
अनवरत अपने हथौड़े को अविराम
चलाते हुए
हाँफने लगती है।
सारा लोहा पिघलाकर उसने सौंप दिया है धरती को।
नारी अपने रक्त से निचोड़कर
दे देती है सबको
सब कुछ
अपना सत
अपना स्वत्व ।
घोड़े ने लोहे का स्वाद चखा है,
पर संसार में जितना भी लोहा है-
सब नारी के रक्त से है लथपथ
धरती के इतिहास में लोहे की खोज किसने की मुझे नहीं पता?
पर इतना निश्चय है कि लोहे को नारी ने हीं आकार दिया है।
लोहे को नारी ने संस्कार दिया है
खुद अपने अंदर लोहे की
कमी से जूझते हुए,
मानव समाज की नींव को फौलाद से भर दिया है।
नारी के रक्त से छीना
लोहा लौटाया हीं नहीं आदमी ने।
उसी लूटे हुए लोहे के दम पर
आदमी मजबूत बनता है
लुटी हुई नारी से पाकर सब कुछ!!
गड़लिया लोहारिन
अनवरत अपने हथौड़े को अविराम
चलाते हुए
हाँफने लगती है।
सारा लोहा पिघलाकर उसने सौंप दिया है धरती को।
नारी अपने रक्त से निचोड़कर
दे देती है सबको
सब कुछ
अपना सत
अपना स्वत्व ।
घोड़े ने लोहे का स्वाद चखा है,
पर संसार में जितना भी लोहा है-
सब नारी के रक्त से है लथपथ
धरती के इतिहास में लोहे की खोज किसने की मुझे नहीं पता?
पर इतना निश्चय है कि लोहे को नारी ने हीं आकार दिया है।
लोहे को नारी ने संस्कार दिया है
खुद अपने अंदर लोहे की
कमी से जूझते हुए,
मानव समाज की नींव को फौलाद से भर दिया है।
नारी के रक्त से छीना
लोहा लौटाया हीं नहीं आदमी ने।
उसी लूटे हुए लोहे के दम पर
आदमी मजबूत बनता है
लुटी हुई नारी से पाकर सब कुछ!!