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Sunday 15 March 2015

मौन-प्रार्थना (गजेन्द्र पाटीदार)

प्रार्थना की
कतारों में सम्मिलित
हो हो कर,
तुझ तक,
अपनी आवाज पहुंचाने वाले
कातर लोग,
अपने क्षरित शब्द,
बिखरे स्वर,
पहुचाने में
न जाने कितने
जतन?  कितनी आवृतियों के
ऊँचे बोझ धकिया कर
आसमान के पार,
मान लेते है
सीकरना,
खुद की प्रार्थनाओं का।

उन कतारों से
खुद को
रखकर दूर
आवाजों की भीड़ से
तुझको रखना चाहता हूँ
दूर बहुत दूर
जहाँ से
मौन शुरू होता है!            14-03-15 3:50 सायं

Monday 9 March 2015

तंत्र-लोक (गजेन्द्र पाटीदार)

मेरे लाख समझाने पर भी,
हर बार की तरह
उस पिचहत्तर साला बूढ़ी अम्मा ने
वोट नहीं दिया/
मैंने उसे समझाया
कि अम्मा तेरे एक वोट से
सरकार बदल सकती है,
बन सकती है, गिर सकती है!
मगर टस से मस नहीं हुई अम्मा!
हर बार की तरह मैं खुद कितनी हीं
पार्टियाँ बदल कर
पहुँचा अम्मा के पास
कि शायद अम्मा
इस पार्टी में नहीं तो उस पार्टी में
रहने पर वोट दे दे!
मगर हर बार विफलता!
मुझे अगली चढ़ाई के लिये उकसाती अम्मा/
पर अब सोच रहा हूँ -
अगले चुनावों में मैं नहीं जाउँगा
अम्मा के पास
नहीं मागूंगा उसका वोट
मैं हीं मान लूँगा हार,
मैं हीं मान लूँगा -'उसके एक वोट से क्या होता है?'
पर सोचता हूँ
इन पाँच सालों में
शायद वह हीं आकर कह दे—
'मुझे नहीं चाहिये तेरी सरकार से कुछ
न राशन, न पेंशन, न कुटीर, न संडास,
न कुछ पर देना चाहती हूँ वोट
अब की बार,
आखिरी बार,
मुझे महसूस तो हो
कि तेरी सरकार,
तेरा लोकतंत्र
मेरे वोट का हकदार है!
मैं तंत्र को नहीं
लोक को वोट देना चाहती हूँ
बस चाहती हूँ इतना कि
ऊँचे घर के खानें की खुशबू से
मेरे बच्चे न मचले!
बस चाहती हूँ इतनी सी बात!
क्या तू या तेरी सरकार
मेरे वोट की गारंटी लेने के लिये तैयार है?'
            09-03-2015

8 मार्च

                 !!1!!
8 मार्च.....
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गेहूँ की बालियाँ पक चुकी,
राईं, राजगिरा और चना अबेरना है,
यही मेरी शक्ति का राज है
कि
साल भर का दाना
सँवारा लूं
दुनिया सँवर जाएगी!
यह न सँवार सकी
तो
पलायन बरस भर का
सहना है
इसलिए रोजाना मार्च करती हूं
अपनी दुनिया को साधनों के लिये!
भीलनी हूँ
रोजाना आठ मार्च करती हूं
सुबह से शाम तक!
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                  !!2!!
8 मार्च
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आठवीं बच्ची जनते हुए
भी
दोषी मैं?

हे विश्व
पहले अपने ज्ञानकोष में
दम तोड़ते
इस शब्द को
अर्थ संकोच से मुक्ति दिलवाओ
तभी तुम्हारे
सारे प्रयास सार्थक होंगे!

दिनोंदिन घुट-घुट कर
अपराध बोध से मर रहीं मैं
एक पल में
जी लूंगी
सारा जीवन
जब
जनमानस समझ लेगा
कि
आठवीं बच्ची जनने वाली
वीरांगना हीं हो सकती है
खुद को गलाकर
वज्र गढ़ने वाली
जीवित किंवदन्ती दधीचि सी!

इसके बिना
तुम्हारा विश्व कोष
मुर्दा है
रद्दी की टोकरी के लायक!

क्या 8 मार्च
को सार्थक करोगे?

Saturday 7 March 2015

मदालसा उवाच.....



शुद्धोसि बुद्धोसि निरँजनोऽसि
सँसारमाया परिवर्जितोऽसि
सँसारस्वप्नँ त्यज मोहनिद्राँ
मँदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्।

शुद्धोऽसि रे तात न तेऽस्ति नाम
कृतँ हि तत्कल्पनयाधुनैव।
पच्चात्मकँ देहँ इदँ न तेऽस्ति
नैवास्य त्वँ रोदिषि कस्य हेतो॥

न वै भवान् रोदिति विक्ष्वजन्मा
शब्दोयमायाध्य महीश सूनूम्।
विकल्पयमानो विविधैर्गुणैस्ते
गुणाश्च भौताः सकलेन्दियेषु!!

भूतनि भूतैः परिदुर्बलानि
वृद्धिँ समायाति यथेह पुँसः।
अन्नाम्बुपानादिभिरेव तस्मात्
न तेस्ति वृद्धिर् न च तेस्ति हानिः॥

त्वम् कँचुके शीर्यमाणे निजोस्मिन्
तस्मिन् देहे मूढताँ मा व्रजेथाः।
शुभाशुभौः कर्मभिर्देहमेतत्
मृदादिभिः कँचुकस्ते पिनद्धः॥

तातेति किँचित् तनयेति किँचित्
अँबेति किँचिद्धयितेति किँचित्।
ममेति किँचित् न ममेति किँचित्
त्वम् भूतसँघँ बहु म नयेथाः॥

सुखानि दुःखोपशमाय भोगान्
सुखाय जानाति विमूढचेताः।
तान्येव दुःखानि पुनः सुखानि
जानाति विद्धनविमूढचेताः॥

यानँ चित्तौ तत्र गतश्च देहो
देहोपि चान्यः पुरुषो निविष्ठः।
ममत्वमुरोया न यथ तथास्मिन्
देहेति मात्रँ बत मूढरौष।

Thursday 5 March 2015

टेसू के फूल

टेसू के फूल
ज्यों धरती के अंतस् की हुलस
आकाश को रंगने
मचल उठी अनिवार
अपनी केशरिया पिचकारी से
रंग दिया पूरा आकाश
दूर से मत देखो
देखो टेसू की ज़द से
आकाश की असीमता कैसे
एक पेड़ में उतरती है
जब फागुन अपनी सीमा को देता है विस्तार ।
                  1-3-15 9:04 pm

Wednesday 4 March 2015

चेतावनी

वह घुली होती है सब तरफ
हवा में
हवा की तरह
जीवन जीने की भी शर्त है
लोकतंत्र में जीने के लिये जरूरी है
चेतावनी का होना,
उसके न होने के कईं नुकसान है कि
आप चल नहीं सकते।
आप बोल नहीं सकते।
और तो और आप जी नहीं सकते।
चेतावनी
हमें नियंत्रित करती है
ईश्वर की तरह
बिना दिखे
बिना लिखे
सब तरफ
दुर्घटनाओं से भरे समय में
एक वही तो नियंता है
चेतावनी
ईश्वर की तरह जिसे हमने बनाया है
खुद पर अनुशासन रखने का आखिरी हथियार ।
             20/02/2015 3:45 am