सूअर की माँ
जानती है,
संसार का तमाम
मैला और जूठन
खाने के बाद भी मनुष्य
अपनी
समूची अनिच्छा और अरूचियुक्त
क्षुधा के बाद भी
उसके बेटे को खाना नहीं छोड़ेगा/
चाहे उसके बेटे की
रग रग में
भरा हो संसार भर का
विष्ठा, अपच और अपशिष्ठ
पर गंदगी में भी
रूचि के अवसर
ढूँढ कर
पचा जाना
मनुष्य की
फितरत हो गई है/
कुछ भी खा जाना
उसकी नीयत हो गई है/
इसलिये सूअर की माँ
विचार कर रही है
कि
वह आगे से
उसी संसार का
सारा उच्छिष्ट
खुद इन्सान के लिये
छोड़ दे
शायद संसार का
उससे पेट भर जाय?
. ...... 24-08-14
मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।
Sunday 4 December 2011
फितरत
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