मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।
बुरांश तुम पहाड़ों पर उगा उनका हृदय हो! सुर्ख लाल धड़कता हुआ!
जैसे दूसरा धड़कता है पीठ पर घास और लकड़ियों का गट्ठर लादे, पहाड़ी रास्तों पर कुँलाचे भरता, पहाड़ों के बीच।
तुम दो ने पहाड़ों को अमर कर दिया है!
______ गजेन्द्र