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Thursday 4 September 2014

इतिहास

इतिहास
विजेता की विजयाभिलाषा का
प्रशस्तिगान हैै /
विरूदावली  फेफड़ों को देती है,
जीने की ताकत
इतिहास को/
यह नहीं है हारे हुए लोगों की चित्कार का करूण क्रंदन/
या कि कब्रों से वंचित
लथपथ शवों पर विदा गीत/
इतिहास की आँख
केवल
अर्जुन की तरह चिड़ियाँ की
आँख देखती है
नहीं देखता
इतिहास
काल की गणना/
वह काल को केवल
सीढ़ी समझता है
जो चढ़नेे नहीं
उतरने के काम आती है
जो तहखानों की ओर ले जाती है
अँधेरी घुप्प गुफा/

इतिहास
मशाल का नहीं
अब तो दीये का काम भी
नहीं करता/
और इतिहासकार
छाती पीटने वाली किराये की
रूदालियां
अलग अलग गांवों/ खेमों की।
       02:09:2014