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Friday 9 May 2014

मंत्रोच्चार

क्या कभी हमने सुनें है,
शब्द मंत्रों के/
क्या कभी उन अर्थ को गहरे निबाहा?
ले पुष्प हाथों में खड़े हो पंक्ति बद्ध,
हमने बस भावनाओं को अर्पित किया/
उन चरणों में जो
स्रोत है मंत्रों का/
जो हमें देता  है शब्द
अर्थ
और करता है सार्थक/
हमारा मंत्रोच्चार हमें खुद गढ़ता है/
हम नहीं रचते मंत्रों को,
मंत्र हमें रचते है/


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