Search This Blog

Saturday 20 September 2014

तंत्र का छल—गजेंद्र पाटीदार

अपने आप को गरीब साबित करने की
होड़ देखना हो तो
राशन की दुकान पर देखिये/
'लोक' को 'तंत्र' खुद
छला जाना सिखा रहा है/
राशन की दुकान पर कतार में
लगा आदमी अमीर नहीं गरीब होना चाहता है/
राशन की दुकान
देवों का अक्षय पात्र है या मानवता की देह पर पनपी कोढ़ है/
खुद से पूछता हूं?
अन्न उपजाता किसान
और भूखा आदमी सिक्के के दो पहलू है/
और लोकतंत्र का सिक्का खनखना रहा है/