मैं जनतंत्र का 'जन'
तंत्र से जुदा
सुनता हूँ
गणतंत्र चार स्तंभों पर खड़ा है
मैं देखता हूँ ।
पर मुझे बताया गया है
ये चार स्तंभ हाथी के पांव जैसे है।
इन चार स्तंभों को स्वीकार करने के लिये
मुझे अंधा होना चाहिये।
े
यदि मैंने देखे
इस गणतंत्र के पैरों को
'चौपाये' की तरह
तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
बेज़ा इस्तेमाल होगा!
देश में कानून का राज है
राष्ट्र की सुरक्षा
राष्ट्रवासियों से ऊपर है!
यदि 'चौपाये' के पैरों को
मैंने कहा 'लंगड़ा'
तो इसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी
संविधान ने मुझ पर सौंपी है
यह चौपाया जिसे चलाने के चक्कर नें
'नाल' ठुकवाई गई है
ताकि चौपाये का लंगड़ापन
लील जाए 'नाल'
पर नाल है कि
पैर से उखड़ कर दूसरे पैर को
घायल कर रही है
गणतंत्र को लंगड़ाना है
मैं आश्वस्त हूँ
कि मैं इस चौपाये की खींची
गाड़ी में बैठा हूँ
ये कहीं पहुँचे
न पहुँचे
सूत्रधार
इस मर्म को जानता है
कि मंच पर चौपाये को चलाने का
तरीका यह भी है कि-
नैपथ्य की यवनिका को पीछे की तरफ
खींचा जाए
गणतंत्र आगे
चलता हुआ महसूस होगा।
01-10-14