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Wednesday 7 December 2011

मीडिया शगल

वे शब्द
मखमली....!
मैं छूता था जब
उन्हें,
लगते थे निहायत खूबसूरत
अनंत संभावनओं की तरह उन्नत,
पर अब वे लगते है,
मिट्टी की तरह।
उर्वर नहीं;
बारूदी!!
ऊसर मस्तिष्क की
गहरी सुरंगों में ठ्से
चिंगारी की तलाश में...!
वे शब्द
जैसे एक जिंदा लाश,
अर्थहीन;
कि उठती नहीं—
जिसमें सड़ाँध
फिर भी करते हैं दूषित
मन को,
मानस को,
मानुस को,
      वे शब्द
          अखबारी शब्द ......