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Thursday 29 December 2011

कृषि-चैनल

प्रिय साथियों 
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की अर्थव्यवस्था भी कृषि आधारित ही है, यहाँ की संस्कृति भी कृषि से ही संपृक्त है, फिर भी हमारे देश में कार्टून और फूहड़ता युक्त सामग्री से लेस चैनल विद्यमान है, परन्तु अनिवार्य एवं अपरिहार्य कृषि पर कोई चैनल नही है. दिखाया भी जाता है तो दूरदर्शन पर आधा आधा घंटे के दो कृषि दर्शन के मध्ययुगीन कृषि का बोध दिलाते कार्यक्रम जो अपर्याप्त व अवांछित है. रहा ई.टी.वी. पर प्रसारित आधा घंटे का एक अन्नदाता कार्यक्रम जो थोड़ा ठीक किन्तु अपर्याप्त है .
ऐसे में कृषि क्षेत्र में नवयुवा पीढी को आकर्षित करे ऐसे कृषि चैनल की शीघ्र आवश्यकता है. आप सबका ध्यान मै देश की एक सबसे बड़ी कमी की और दिलवाना चाहता हूँ. हमारे देश का ८०% जन-जीवन कृषि पर निर्भर.पर देश का ध्यान इस और नहीं की कृषि तरक्की का व्यवसाय बने!कुल सकल घरेलू उत्पाद का २०% ही कृषि से आता है. यानि कृषक कमजोर नहीं बल्कि बहुत शांत और बहुत उदार है हमारा कृषक जो मानसून और प्राकृतिक आपदाओ के विरुद्ध संघर्ष जारी रख कर अपने कर्म में निरत रहता है.सरकार ने १९४७ के संविधान में पानी खेत तक पहुचने की व्यवस्था का वादा किया!  पर खुद के द्वारा पानी खेत में (बिजली द्वारा)देने पर उसे चोर कहा गया. पर किसान सुनता है बिना चिंता किये?
म.प्र. को मुझ जैसे किसानो के कारण कृषि कर्मण अवार्ड २०१२ के सम्मान से नवाजा गया. १८% कृषि विकास दर के कारण. जबकि देश की २.७६% .. इन चीजो की और भी ध्यान दीजिये मित्रो की देश के पप्पुओ के लिए कार्टून चैनल, नंगों के लिए फैशन चैनल, बहरो के लिए इशारे वाले समाचार पर कृषकों के लिए एक फूल टाइम कृषि चैनल नहीं! क्या यह विसंगति नहीं?जब की इस क्षेत्र में अंधाधूंध पैसा खाद, दवाई, बीज के व्यापार में बह रहा है. विदेशी कंपनिया खुला लूट रही है. अतः टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी कोई तो इस और ध्यान देकर कृषि पर चैनल लईये? देश और किसान दोनों तरक्की करेंगे!