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Friday 21 June 2013

आतंकवाद

न जाने मरने के पहले के,
उस क्षण में, 
उसने क्या सोचा होगा।
शायद कोई दबी हुई इच्छा,
कोई प्यारा स्वप्न, 
उसकी आँखों के सामने तैर गया हो।
या शायद उसने सोचा हो अपने,
खेत खलिहानों के बारे में।
या शायद सोचा हो उसने,
अपने गाँव में कूकती कोयल को।
या शायद याद आई हो उसे,
अपने गाँव की स्वच्छ सुगन्धित शीतल वायु।
न जाने मरने से पहले के
उस क्षण में,
उसने क्या सोचा होगा?
शायद उसने सोचा हो अपने,
घर-परिवार के बारे में।
या शायद उसने सोचा हो अपने,
सबसे छोटे बच्चे का मासूम चेहरा।
या उसे याद आई होई शायद,
उसकी प्रतीक्षा करती मान की आँखें।
न जाने मरने से पहले के
उस क्षण में,
उसने क्या सोचा होगा?
न जाने मरने से पहले के,
वह धर्म, जाती जैसे शब्दों पर थूक सका,
या नहीं ।
न जाने वह द्वेष,इर्ष्य,स्वार्थ आदि शब्दों से,
नफ़रत कर सका, या नहीं।
न जाने मरने से पहले के
उस क्षण में,
उसने क्या सोचा होगा?
......साजिद आज़मी ex prof. Botny Govt.college Kukshi.

..............मै अपने मित्र साजिद आजमी (इलाहबाद) की कविता
(आतंकवाद) जो उन्होंने मुझे १९९४ में दी थी, शेयर कर रहा हूँ. और उन्हें ढूँढ़ रहा हूँ |