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Tuesday 30 December 2014

मछली के आँसू

मछली के आँसू
महसूस कर रहा हूँ
सागर को देख कर/
इतना खारापन आखिर
पीढ़ा के घनीभूत उच्छ्वास का
तारल्य तो नहीं......
संभव है/
संभव है सागर के किनारे
रेत का सैलाब
कितने मरूओं को
पाले अंक में अपने
कितनी मरीचिकाओं का
अपराधी है ।

मेरे हिस्से का गीत

मुझ जैसे कितने हीं/
लगे हैं और लगेंगे/
जागे है जगेंगे/
गा चुके है और गाएंगे/

मैं लव नहीं!
दशमलव, शतमलव, सहस्त्रमलव, लक्षमलव भी कदापि नहीं/
मैं गणित, ज्ञान और विज्ञान से परे /
एक अदद दायित्व लेकर आया
कोई हूँ /

जो अपने सिर पर
मिट्टी की परत में दबा सोया
किसी सूरज, पानी
और वायु के समुच्चय में,
अपने ऊपर दो पत्तियों के
अंकुरों को निकालकर एक गीत गाऊंगा/ मेरे साथ और
और भी सुर मिलाएंगे/

हम सब धरती पर
धरती के साथ
धरती के लिये
हरियाली के गीत गुनगाएँगे/
इस चिंता के बिना की
समवेत में कौन शामिल है,
और कौन नहीं/
हमें तो गाना है गीत अपने हिस्से का/
मेरे हिस्से का गीत!
28-12-2014