मछली के आँसू
महसूस कर रहा हूँ
सागर को देख कर/
इतना खारापन आखिर
पीढ़ा के घनीभूत उच्छ्वास का
तारल्य तो नहीं......
संभव है/
संभव है सागर के किनारे
रेत का सैलाब
कितने मरूओं को
पाले अंक में अपने
कितनी मरीचिकाओं का
अपराधी है ।
महसूस कर रहा हूँ
सागर को देख कर/
इतना खारापन आखिर
पीढ़ा के घनीभूत उच्छ्वास का
तारल्य तो नहीं......
संभव है/
संभव है सागर के किनारे
रेत का सैलाब
कितने मरूओं को
पाले अंक में अपने
कितनी मरीचिकाओं का
अपराधी है ।