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Monday 8 September 2014

अर्थसंकोच - गजेंद्र पाटीदार

एक ने कहा 'राम'
दूसरे ने 'मंदिर' समझा
कबीर! बपुरा!!
ढाई आखर के फेर में
क्या करता?
—'टीका'

जब शब्द और अर्थ
मृत्यु शय्या पर
तड़पते हों,

जब 'संप्रदाय' शब्द में
सड़े गले मुर्दे की
गंध महसूसने लगे

तब मानना होगा
लोगों की घ्राण शक्ति
शब्दों की उपज है/

महाबोधि —गजेंद्र पाटीदार

महाबोधि
पोखरण के पोखर का आचमन स्वीकारो
सचराचर विश्व तुम्हारा है,
किसे कहूं मेरा,
विश्व, देश, सागर,
मरूथल, पठार, 
नदियाँ,  झील, पोखर,
सब कुछ
भूमिज धान्य भी, यूरेनियम भी,
संलयन, विलयन भी/
जीवन तुम्हारा
प्रलय भी तुम्हें समर्पित /
यदि सृजनहित,
इस सृष्टि में;
कुछ दखल हो तो—
यह सब अस्मिता के लिये/
कुछ तैमूर, चंगेज
यदि रौंदे भू को, भारती को, भविष्यत् को,
तो/ हम उत्तर देंगें/
हमेशा की तरह/
                (बुद्ध पूर्णिमा 11मई1998 के पोखरण विस्फोट पर)     ...12,05,1998