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Thursday 22 January 2015

विस्मृतियाँ

मैं इस विवाद में नहीं पड़ता
कि
अमृत को ईश्वर ने बनाया
या खोजा!
ईश्वर की ओर से
अनमोल उपहार
अमृत को स्वीकार करता हूँ
आचमन करता हूँ
क्योकि
बिना पान किये
मेरा जीना
और जी उठना मुश्किल हीं नहीं
असंभव है।
जीवन के महाभारत में
चिर अस्थायी और अनावश्यक
स्मृतियों की कुहेलिका
कितनी अवसाद
और उन्माद दशाओं की
मृत्युओं से प्रतिदिन मिलवाती है?
कह नहीं सकता।
एक व्यक्ति अपनी मृत्यु
को प्रति दिन आखिर
कितना सह सकता है?
विस्मृतियों का अमृत हीं
पीकर मैं जी पाता हूँ
अपना पूरा जीवन।
विस्मृतियां हीं
उत्साह और उत्कर्ष का
ताना बाना बुनती है मुझमें
नये ऊगते सूरज के साथ
नयी उमंगें लेकर
विदा करता हूं स्मृतियों की
मौतो को
जीवन मंथन से निकला
विस्मृतियों का अमृत
मुझे अपना पूरा जीवन जीने की
अमरता देता है।
इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता
कि इसे ईश्वर ने
बनाया है या खोजा है।

Monday 5 January 2015

किसान ..

गहरे अवसाद
और कर्ज के बोझ को
सह नहीं पाया।
अपनी पीड़ा
और देयताओं को
कह नहीं पाया।
झेल नहीं पाया तनाव।
हाड़-तोड़ मेहनत के बाद,
असफलता की
अकर्मण्यता का भाव,
घेर चुका है
मुझको।
शेष नहीं जीवन की राह
मर्म को विदीर्ण करते
व्रणों से गिजबिजे मन को
और कितना ढोऊं
घुन लगी इन हड्डियों से?

मैं भूखे पेट मरकर भी
संभावनाओं के कुछ दानें
छोड़ जा रहा हूं
अपनी विरासत में
कि आने वाले समय का कोई
हस्ताक्षर
उन्हे बो दे।
उगा दे
मेरे हिस्से की तृप्ति।
नष्ट कर दे तनाव,
कर्ज और आत्महत्याओं का दौर।
निराशा में भी
छोड़े जा रहा हूं
अन्न के बीज
आशा के साथ
अपनी विरासत में।
जीवन के बाद
संभावनाओं की जमीन के लिये/
                   4-1-15