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Wednesday 8 July 2020

ताप्ती नदी

#ताप्ती_नदी #जन्मोत्सव

मनुष्य का खुद के जन्म का पता नहीं होता और नदी के जन्म का दिन मनाने लग जाता है। यह खोज नदी के प्रति मनुष्य की स्वयं की आस्था है या कुछ और! कुछ भी हो मगर मनुष्य स्वयं का उत्स प्रकृति में खोजने की निरंतर चाहना लिए होता है। जिसके प्रमाण है हर धर्म के अपने आख्यानों में वर्णित वे कथानक जो कही न कही मनुष्य का अस्तित्व नदी, पहाड़, समुद्र आदि से जोड़ने का उपक्रम करते हैं।

आज ताप्ती नदी का जन्मदिन है, आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को म. प्र., महाराष्ट्र और गुजरात ताप्ती नदी का जन्मोत्सव मनाते हैं अज्ञात काल से। वेगड़ जी लिखते हैं - "संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से हुआ है।" इस आधार पर किसी भी नदी की क्रोढ़ में बसी जनता की जीवनदायिनी शक्ति नदी ही होती है फिर वह जनता क्यों न अपनी शक्ति के प्रति आस्था से संपृक्त हो?

ताप्ती नदी का उद्गम म. प्र. का मूलताप्ती या मुलताई है। जो बैतूल जिले में है। सूर्यपुत्री ताप्ती का जन्म सूर्य के आँसुओं से हुआ कहा जाता है। मेरे जिले से निकलने वाली नदी 'माही' भी सूर्यपुत्री है और यमुना भी सूर्यपुत्री। तीन बहने, मगर मां अलग। 

गंगा और यमुना तो पृथ्वी पर बाद में अवतरित हुई, मगर नर्मदा इनसे सीनियर है और नर्मदा से भी सीनियर है ताप्ती। यमुना सप्ताह भर आराधना करने पर पुण्य देती है, गंगा स्पर्श करने पर पावन करती है, नर्मदा तो दर्शन मात्र से पवित्र कर देती है मगर ताप्ती के बारे में विख्यात है कि वह स्मरण मात्र से पातक धो देती है। भगीरथ के तप के बाद गंगावतरण की बात आई तब गंगा जी ने मृत्युलोक में ताप्ती की महिमा को देखते हुए आने से मना कर दिया। भगवान शिव ने नारद जी को ताप्ती की महिमा हर लेने का आदेश दिया। (मीडिया का काम ही है किसी को भी महिमामंडित कर दे या अच्छे भले को धूल चटा दे) नारद जी ने ताप्ती की तपस्या की, ताप्ती के प्रसन्न होने पर नारद जी ने उनसे उनकी महिमा मांग ली। ताप्ती ने तथास्तु कह दिया मगर छल का दंड तो भुगतना ही था, नारद जी को शरीर पर श्वेत कुष्ठ रोग हो गया। नारद जी दौड़े दौड़े ब्रह्मा जी के पास गए, लेकिन वे तपस्या में लीन। फिर भोलेनाथ के पास गए, तब उन्होंने भी कहा कि जिसने दर्द दिया है दवा भी उसी की। नारद जी लौट कर ताप्ती के पास आए, (जहां टिंबा नामक गांव, तहसील कामरेज जिला सूरत) टिंबा गांव के पास ताप्ती के किनारे तप किया, गल्तेश्वर शिव की आराधना की और रोग मुक्त हुए। 

दुर्वासा ऋषि का आश्रम ताप्ती नदी समुद्र संगम पर था जो अब डुमस नामक गांव के नाम से जाना जाता है। महर्षि नारद के द्वारा ताप्ती की महिमा हर लेने के कारण ताप्ती का प्रभाव कम हुआ है पर पुण्यत्व प्रदान करने में वह पीछे नहीं है। सच पूछा जाए तो नदियों ने तो दिया ही है, नदियां दात्री ही नहीं धात्री भी हैं। दोषी तो हम हैं जो नदियों का जल पीकर भी अघा नही रहे हैं, हम सबका कुंभज होना ही सबसे बड़ा पाप है जिसका प्रायश्चित भी उन नदियों के ऊपर ही रख छोड़ा हुआ है। 

ताप्ती का विवाह चंद्रवंशी नरेश संवरण के साथ हुआ वर्णित है। पुराणों की कथाओं का हम समझदार लोग प्रायः मजाक उड़ाते है मगर इन मिथकों ने जीवन की कितनी ही गुत्थियों को सुलझाने का काम किया है।

अब मैं ताप्ती की दूसरी विशेषता पर आता हूँ। ताप्ती समुद्र के साथ संगम करते हुए डेल्टा नही बनाती। वह एश्चुअरी बनाती है। यानी ज्वारनदीमुख। ताप्ती सीधे समुद्र में मिलती है, इसलिए यहां से खाड़ी देशों में जहाज चलते रहे हैं। समुद्र का ज्वार ताप्ती का सील्ट लेकर अपने भीतर समो लेता है। समुद्री जल और ताप्ती के मीठे जल के सम्मिश्रण में कई जीव जंतु और वनस्पतियां पनपती है वह अन्यत्र दुर्लभ है। ज्वारनदीमुख का बड़ा उदाहरण ताप्ती के साथ नर्मदा और हडसन नदी भी है। नर्मदा का ज्वारनदीमुख देख लिया मगर ताप्ती के संगम को देखना बाकी है। ताप्ती संगम पर तो सूरत और हजीरा में सुविधा भी बहुत है। जरूर यह सौभाग्य भी कभी मिलेगा। लेकिन अब मां ताप्ती का पुण्य स्मरण करते हुए कथा को आज समाप्त करता हूँ। मां ताप्ती सबके ताप हरना और हमारे अपराध क्षमा करना, समूची मानवता प्रकृति दोहन की अति में अपराधी बन चुकी है।