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Tuesday 23 September 2014

सपने - गजेंद्र पाटीदार

कौंन बुनता होगा सपने?
मैं उस सपनों के विधाता से मिलना चाहता हूँ /
कैसा होगा वह सपनों का आर्किटेक्ट?
जो संसार को सपने देकर खुद जाग रहा है—
तुममें, हममें, सबमें/
क्या सपने नियति है या नियति स्वप्न है?
सोचता हूँ /
पर अच्छा होगा
उस सपनों के देवता को जागनें दूँ और खुद सो जाऊं
एक सपना जीने के लिये/
एक सपना पूर्ण होता है अपने आप में एक जीवन की तरह/
हम एक जीवन जाएँ या एक सपना, बराबर है!

क्षणभंगुरता - गजेंद्र पाटीदार

21 वीं सदी के भौतिकतावादी समय के
नवहस्ताक्षर
भौतिकता के पुनर्जागरण काल के
उन्नायक
नहीं समझते कि
दुनिया के पार भी एक दुनिया हैं, मेले हैं/
'वे'
सब चार्वाक के चेले है/
—" जो है, यहीं है; यहाँ नहीं वह कहीं नहीं" के सूत्र के सूत्रधार
जीवन को क्षणभंगुर मानकर
करते हैं व्यवहार /
'डिनर' की टेबल पर
जीवन की नश्वरता पर
करते हैं चर्चा
पर टेबल की प्लेट में रखा.....
उस मुर्गे से ज्यादा क्षणभंगुरता का मतलब कौन समझता है?
इस क्षणभंगुरता में इतवार के मानी
अलग नहीं होते?
खुद से पूछता हूँ /