गाँव की कच्ची सड़क पर
दौड़ते दुपहिया वाहनों
और आवाजाही के बीच
अपने लिए दानें जुटाना
एक गिलहरी के लिए
कितना बड़ा काम है?
कि इसके लिए प्राणों की
आहुति देनी पड़ती है
उस गिलहरी को/
खतरा देखते हीं
नीम की पुरानी खोखर मेँ
विलुप्त हो जाना
उस गिलहरी का/
काश सेतु बांधनें के
अकिंचन कार्य के पुरस्कार में
मिली पीठ की तीन धारियों
की जगह उसनें मांग लिये होते
दो पंख!
बना दिया
बगैेर पंखों का पंछी
उस गिलहरी को/
ऐसा सोचती है गिलहरी
जब कभी नवजात
असुरक्षित हो/
और कभी
दौड़ती कच्ची सड़क के बीच
दाना ढूँढने की कोशिश
जान हीं ले ले/
तो नीम की खोखर मेँ
क्या करेंगें नवजात?
सोचती है गिलहरी /
इसीलिए दौड़ती सड़क की दुर्घटना में
मर कर भी एक सोच
दे जाती है
गिलहरी
नन्हीं परी सी/
11,08,2014
मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।
Wednesday 27 August 2014
गिलहरी
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