Search This Blog

Monday 5 January 2015

किसान ..

गहरे अवसाद
और कर्ज के बोझ को
सह नहीं पाया।
अपनी पीड़ा
और देयताओं को
कह नहीं पाया।
झेल नहीं पाया तनाव।
हाड़-तोड़ मेहनत के बाद,
असफलता की
अकर्मण्यता का भाव,
घेर चुका है
मुझको।
शेष नहीं जीवन की राह
मर्म को विदीर्ण करते
व्रणों से गिजबिजे मन को
और कितना ढोऊं
घुन लगी इन हड्डियों से?

मैं भूखे पेट मरकर भी
संभावनाओं के कुछ दानें
छोड़ जा रहा हूं
अपनी विरासत में
कि आने वाले समय का कोई
हस्ताक्षर
उन्हे बो दे।
उगा दे
मेरे हिस्से की तृप्ति।
नष्ट कर दे तनाव,
कर्ज और आत्महत्याओं का दौर।
निराशा में भी
छोड़े जा रहा हूं
अन्न के बीज
आशा के साथ
अपनी विरासत में।
जीवन के बाद
संभावनाओं की जमीन के लिये/
                   4-1-15