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Wednesday 5 December 2012

पाटीदारी बोली: अनुशीलन

            Gajendra Patidar         पाटीदारी बोली के सम्बन्ध में कुछ बातें आज अपने ब्लॉग पर शेयर करना चाहता हूँ। मूलतः पश्चिम निमाड़ के बड़वानी -  धार  की  तहसीलों  के 72 ग्रामो के  साथ  खरगोन जिले के 54 ग्रामों के लेवा पाटीदारों के द्वारा जिस बोली का व्यवहार अपनी मातृभाषा के रूप में किया जाता है ; उसका उल्लेख किसी भी प्रकार से म.प्र. के लिंग्विस्टिक शासकीय/अशासकीय कार्यों में नहीं है. हम पाटीदारों के मुख्य रूप से कृषिजीवी होने एवं अपने अंचल की प्रभुजाति होने के बावजूद ख़ुद हमारा ध्यान इस और नहीं गया है कि अत्याधुनिकता के इस दौर में अपनी  दिन-प्रतिदिन घुट घुट कर मरने वाली इस पाटीदारी बोली के बारे में, इसके परिमार्जन के बारे में सोचे.
                        हमारी यह बोली वस्तुतः गुजराती की बोलियों (एवं उपबोलियों) में (1.Ahmedabadi, 2.Gamada,  3.Anawla, 4. Bhawnagari, 5. Bombay Gujarati, 6. Brathela, 7. Charottari, 8. "PATIDARI", 9. Eastern Bhroch Gujarati, 10. Gohilwadi, 11. Gramya, 12. Holadi, 13. Jhalawadi, 14. Kakari, 15. Kathiyawadi,16. Kharwa, 17. Nagari, 18. Parsi, 19. Patani, 20. Patnuli, 21. Saurashtra Standard, 22. Sorathi, 23. Standard Gujarati, 24. Surati, 25. Tarimuki(Ghisadi).26. Vadodari, से एक "पाटीदारी" है। हिन्दी के भाषा विज्ञानी डॉ.भोला नाथ तिवारी ने अपने ग्रन्थ "हिंदी भाषा " में गुजराती भाषा की सोलह बोलियों और दो उपबोलियो को ही मान्यता दी है।
                        लेकिन मेरा आलोच्य विषय "पाटीदारी बोली" है। मेरा मत है  जब पाटीदारों ने अपनी मूल भूमि छोड़ कर मध्य भारत की ओर निष्क्रमण किया और निमाड़ के इस अंचल में आकर बसे, अपने साथ अपनी विरासत के रूप में अपनी मातृभाषा को लेकर आए। जिसका आज तक हम अपने भाषिक व्यवहार में उपयोग करते है। निश्चित ही पाटीदारी बोली का प्रभाव निमाड़ी बोली पर पड़ा है , और तदनुरूप निमाड़ी बोली का प्रभाव पाटीदारी बोली पर भी उसी रूप में पड़ा है।हमारी  इस भाषा को जीवित रहना चाहिए। क्योकि आज के तथाकथित युग में अब सभी समझदार लोग अपने बच्चों के  साथ अपनी बोली में नही बल्कि अंग्रेजी या हिंदी में बतियाना पसंद करते  है।
                         हमारी इस पाटीदारी बोली में लोक परंपरा और लोक गायन के साथ लोक साहित्य के पर्याप्त रूप विद्यमान है। लिखित साहित्य भी भजन-भक्ति व विविध संस्कारों के अवसर पर गाये जाते है।यथा ---------           
     सकळ  सभा ना मन भाया, रुण झुण  नाच रे गणराया।
     दोंद बड़ी दंतासुर मोटा,  दोंद बड़ी दंतासुर मोटा;
     लम्बी सोंड रोऴाया। रुण झुण  नाच रे गणराया।।
     शिवशंकर ना  पुत्र कहाया , शिवशंकर ना  पुत्र कहाया ,
     गंगा गौरा मायाँ ; रुण झुण  नाच रे गणराया।।                                             
                           उक्त उदाहरण के माध्यम से केवल यह सिद्ध है कि पाटीदारी बोली में प्राचीन रचित साहित्य पर्याप्त एवं सम्मान जनक मात्रा में विद्यमान है( यदि शोधार्थियों की अपेक्षा होगी तो ब्लॉग के माध्यम से उन्हें भी अनावृत करने की कोशिश करूंगा)। जैसा कि मैंने 72 व 54 ग्राम-गोल की बात की थी, वास्तव में कृषि एवं अन्य व्यावसायिक कारणों से इन ग्रामों के अतिरिक्त ग्रामों में भी लेवा पाटीदार समाज के बन्धु स्थानीय प्रव्रजन के तहत रहने व मान्यता प्राप्त कर 72 की जगह 77 ग्राम हो चुके है एवम् 54 की जगह भी अधिक हो गए है। जैसा की ज्ञात है -विश्व में प्रतिदिन भाषाऍ  मर रही है उसी श्रंखला में कहीं हमारी यह बोली भी श्रेणी -बद्ध न हो यह प्रयास हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। मै इस लेख के माध्यम से अपनी इस बोली के व्याकरणिक और साहित्यिक के साथ भाषा वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से भी विवेचन को सम्मिलित करने का प्रयास करूंगा।
                           मुझे तात्विक विवेचन से प्रतीत होता है की पाटीदारी बोली गुजराती भाषा की 'पाटीदारी' बोली के सबसे ज्यादा निकट है। चूंकि हमारे इन लेवा पाटीदारो का Great migration कही न कही चरोत्तर भूमि क्षेत्र से जुड़ा  है, जो माही और साबरमती के दोआबा प्रान्त के रूप में विख्यात है। इतने लम्बे समय में हम प्रव्रजित पाटीदारों की बोली पर निमाड़ी प्रभाव होना स्वाभाविक भी है और निमाड़ी को इस पाटीदारी बोली ने अपने शब्दकोष से संपृक्त  एवं समृद्ध भी किया है। समय के साथ अर्थ विस्तार, अर्थ संकोच, प्रयत्न लाघव, मुख-सुख आदि प्रवृत्तिया आती है  यह बोली भी उन प्रवृत्तियों से अभिन्न है।   इस बोली में लिखित साहित्य है, किन्तु अपर्याप्त है जिसके संकलन और गवेषणा दोनों  की  आवश्यकता है। और यह बोली भी अपने सुधीजनो से यही अपेक्षा करती है।
                             धार,  बड़वानी और खरगोन जिलों के कई ग्रामो में बोली जाने वाली यह बोली मध्य-प्रदेश के किसी भी शासकीय उल्लेख  में दर्ज नहीं है, क्योकि प्रायः  माध्यम के कॉलम में प्रत्येक पाटीदार हिंदी को ही अपनी भाषा के रूप में दर्ज करता है। यही अपनी इस भाषा के साथ अ'मान' की समस्या का मूल है।
                                        अब मैं हिंदी , गुजराती एवं पाटीदारी तीनो भाषाओ के वाक्यांशों का अनुवाद  प्रस्तुत करता हूँ ------
(हिंदी)  आप कहाँ गए थे ? (गुजराती)  તમે ક્યાં ગયા હતા? (पाटीदारी) तमी क्यां ग्याता?
(हिंदी) आप कब वापस आओगे? (गुजराती) તમે ક્યારે પાછા આવશો? (पाटीदारी) तमी क्यारS पछा आवोगS? आदि .........                                     क्रमश:.......