कौंन बुनता होगा सपने?
मैं उस सपनों के विधाता से मिलना चाहता हूँ /
कैसा होगा वह सपनों का आर्किटेक्ट?
जो संसार को सपने देकर खुद जाग रहा है—
तुममें, हममें, सबमें/
क्या सपने नियति है या नियति स्वप्न है?
सोचता हूँ /
पर अच्छा होगा
उस सपनों के देवता को जागनें दूँ और खुद सो जाऊं
एक सपना जीने के लिये/
एक सपना पूर्ण होता है अपने आप में एक जीवन की तरह/
हम एक जीवन जाएँ या एक सपना, बराबर है!
मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।