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Wednesday 17 September 2014

कल कल - गजेंद्र पाटीदार


आदमी
कल और कल
के बीच
उम्मीदें बोता है।
और असफलताएँ
       ढोता है।

बर्फ की मानिंद
उसका वर्तमान
पिघल पिघल कर
कल कल
          बहता प्रतीत होता है।
कल कल बहता
          अतीत होता है। 
                             09,04,1998