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Friday 21 April 2017

प्रेम का उत्ताप

अपनी सीमाओं में ही सही,
सूरज पास आता है
धरती पर ताप
बढ़ जाता है।

वैशाखी दुपहरी में
हमारा हाहाकार
सूरज को सिर पर उठाता सा।

कभी सूरज को धरती के पास
आने पर कितनी ठंडक मिलती है?
यह भी चिन्हना
किसी विरही के पास बैठकर।

- गजेन्द्र पाटीदार