मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।
अपनी सीमाओं में ही सही, सूरज पास आता है धरती पर ताप बढ़ जाता है।
वैशाखी दुपहरी में हमारा हाहाकार सूरज को सिर पर उठाता सा।
कभी सूरज को धरती के पास आने पर कितनी ठंडक मिलती है? यह भी चिन्हना किसी विरही के पास बैठकर।
- गजेन्द्र पाटीदार