मैंने समुद्र देखा नहीं कभी,
मैं एक घोंघा,
एक मछली,
एक मुठ्ठी रेत,
और एक चुल्लू पानी
देखकर।
उसका अनुमान करता हूँ।
और भूल जाता हूँ
खारे पान को।
जो समंदर को
इन सबसे अलग बनाते है।
पर मै अब समझने लगा हूँ--
कि वह खारेपन के बावजूद-
कोई बड़ी चीज है।
और जिसे खारे पानी से
भरी आँखें भी-
नहीं देख सकती। -------गजेन्द्र पाटीदार
मैं एक घोंघा,
एक मछली,
एक मुठ्ठी रेत,
और एक चुल्लू पानी
देखकर।
उसका अनुमान करता हूँ।
और भूल जाता हूँ
खारे पान को।
जो समंदर को
इन सबसे अलग बनाते है।
पर मै अब समझने लगा हूँ--
कि वह खारेपन के बावजूद-
कोई बड़ी चीज है।
और जिसे खारे पानी से
भरी आँखें भी-
नहीं देख सकती। -------गजेन्द्र पाटीदार