गुमशुदा
अपने जीवन से
अपरिचित उस आदमी ने
आज देखा इश्तहार
अपने गुम होने का
ठिठक गया वह
देखकर अपनी
उन इश्तहारों में गुमशुदगी
पर आज उसे कितना
सुकून मिला?
बस भगवान जानता है।
जो अनाम जिंदगी में नहीं मिला
उसे वह इन इश्तहारों में पाकर
वह खुश है
खुश है खुद के
खोने का
कितना उल्लास आज
उसे मिल रहा
जो जीकर नहीं पाया
वह खोकर पाया
इन इश्तहारों में
'कि कोई उसे भी ढूँढता तो है'
-कितना है गुमशुदगी का सुकून?
बिसराया वर्तमान जानता है।
कोई और
समझे न समझे!!
मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।