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Monday 9 March 2015

8 मार्च

                 !!1!!
8 मार्च.....
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गेहूँ की बालियाँ पक चुकी,
राईं, राजगिरा और चना अबेरना है,
यही मेरी शक्ति का राज है
कि
साल भर का दाना
सँवारा लूं
दुनिया सँवर जाएगी!
यह न सँवार सकी
तो
पलायन बरस भर का
सहना है
इसलिए रोजाना मार्च करती हूं
अपनी दुनिया को साधनों के लिये!
भीलनी हूँ
रोजाना आठ मार्च करती हूं
सुबह से शाम तक!
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                  !!2!!
8 मार्च
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आठवीं बच्ची जनते हुए
भी
दोषी मैं?

हे विश्व
पहले अपने ज्ञानकोष में
दम तोड़ते
इस शब्द को
अर्थ संकोच से मुक्ति दिलवाओ
तभी तुम्हारे
सारे प्रयास सार्थक होंगे!

दिनोंदिन घुट-घुट कर
अपराध बोध से मर रहीं मैं
एक पल में
जी लूंगी
सारा जीवन
जब
जनमानस समझ लेगा
कि
आठवीं बच्ची जनने वाली
वीरांगना हीं हो सकती है
खुद को गलाकर
वज्र गढ़ने वाली
जीवित किंवदन्ती दधीचि सी!

इसके बिना
तुम्हारा विश्व कोष
मुर्दा है
रद्दी की टोकरी के लायक!

क्या 8 मार्च
को सार्थक करोगे?