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Thursday 2 April 2015

कविता की कलम (कविता) गजेन्द्र पाटीदार

मेरी कविता मेरी तरह हीं है,
जिंदा!
जिस तरह तुम मुझे काटना चाहते हो
काटो मुझे
या मेरी कविता को,
हर बार,
हर हाल में
वह होगी जीवित
जीवन की सभी संभावनाओं के साथ,
कटी हुई कविता में भी
शाख की तरह
अनंत संभावनाएं भरी होंगी।
— कि जाकर थोड़ी सी मिट्टी,
थोड़ी सी धूप
और थोड़ा सा पानी दे दो।
नई कोंपले,
नये पत्ते, नये बूटे,
फिर नई ऊर्जा,
उष्मा के साथ नया बिरवाँ
पल्लवित पुष्पित होंगा।

तुम्हारे हत्य़ारे हाथों से भी
महकूंगा मैं;
मेरी कटी हुई कविताएँ।
चाहे काटने के लिये
तुम आओ तो
मेरे पास
मेरी
या मेरी कविताओं की छाया में।  2-4-15©