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Tuesday 14 July 2020

कोरोना की दवा

रात मुझे सपना आया कि चीन की वायरसोलॉजी लेब ने कोरोना की दवा और वेक्सिन दोनों बना लिए। लेकिन दवा बनाने के लिए उपलब्ध कच्चा माल कम था, चूंकि टेस्टिंग के दौरान चीनी वैज्ञानिकों ने खुद पर टेस्ट में खर्च कर दिया था इसलिए अधिक दवा बनने के निकट भविष्य में कोई चांस नही थे। इसलिए परोपकार की दृष्टि से चीन ने उन डेढ़ दो सौ डोज़ के लिए विज्ञप्ति निकाली, कि विश्व के जिन महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है उन्हें ही इसका लाभ दिया जाए!

पहले तो चीन में ही घमासान मचा कि इस दवा को चीन किसी और को क्यों दे? अपने ही देश के वीआईपी को ही मुहैय्या क्यों न किया जाए?

विरोध के सुर चीन में थे तो सही लेकिन टीवी, मीडिया पर बोलने को कोई तैयार नहीं। अभी अभी गलवान घुसपैठ में चीन के सैनिक मारे जाने के बाद भी जब सरकार ने उनके नाम घोषित न किए तो, चीनी जनता समझ गई कि आम लोगों का हश्र क्या होगा? इसलिए वहाँ का मीडिया तू बोल, तू बोल के चक्कर में हिचकोले खाता रहा। अब वहाँ रवीश कुमार जैसा कोई आत्मघाती मानव बम पत्रकार भी नहीं जन्मा इसलिए टीवी मीडिया एक दूसरे को कोसने लगा। द चाइनीज नामक चैनल द चाइनीज़ टेलीग्राफ चैनल पर आरोप लगा रहा था कि तूने अर्नब पैदा किया और सामने वाला प्रत्यारोप कर रहा था कि तूने रजत शर्मा पैदा किया। सब रवीश कुमार की कमी अनुभव कर रहे थे।

हर मामले की तरह चीनी अवाम का मत न जिनपिंग को पूछना था और न पूछा गया। जिनपिंग ने उसे विश्व के अति विशिष्ट लोगों के लिए दान करने का मन बना लिया।

जैसे ही भारतीय कम्युनिस्टों को पता चला कि जिनपिंग महोदय ने उक्त कोरोना दवा दान करने का विचार किया है भारतीय मीडिया में जिनपिंग की उत्पति की संभावना से लेकर उनकी आने वाली दस पीढ़ियों के निमित्तार्थ लेख प्रकाशित किए। जेएनयू में कार्यशालाएँ आयोजित होने लगी। साथ ही इस महात्याग के लिए जिनपिंग जी को अग्रिम नोबल पुरस्कार न देने के लिए लानत भेजने हेतु निंदा प्रस्ताव पारित करने की झड़ी लग गई। चूंकि विश्व में मार्क्स-माओवाद समाप्त होकर शेष भारत में ही है इसलिए भारतीय कम्युनिस्टों पर निंदा का वैश्विक भार भी था।

चीन ने घोषित किया कि आगामी निकट भविष्य में दवा की संभावना कम है और विश्व के प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष भी कोरोना ग्रसित हो चुके हैं इसलिए प्रारंभ में उन्हें ही यह डोज दिया जाए। राष्ट्राध्यक्ष रहेंगे तो पब्लिक फिर पैदा हो सकती है। यदि राष्ट्राध्यक्ष ही नहीं रहे तो पब्लिक का होना न होना बराबर है।

उन्होंने एक सेम्पल अमेरिका भेजा, एक यूके, एक आस्ट्रेलिया, एक न्यूजीलैंड और इस तरह सभी को एक एक भेज दिया। सभी राष्ट्राध्यक्षों की डाक पहुंच पावती चीन वापस पहुँच भी गई।

सभी राष्ट्राध्यक्षों ने आपस में फोन कर एक दूसरे के विचार जाने और सर्वानुमति से निर्णय लिया कि इस दवा का ट्राई केवल पाकिस्तान के इमरान खान के अलावा कोई न करे, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखे कि इस दवा के विनष्टीकरण के लिए न जमीन में गाड़ा जाय, न समुद्र में फेंका जाय, न अंतरिक्ष में छोड़ा जाए। क्योंकि यह हर जगह घातक ही रहेगा। चीन यदि दान भी दे रहा है तो मानकर चला जाए कि वह सभी राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों को एक साथ मारकर संसार पर राज करने के अलावा सोच ही नहीं सकता इसलिए कोई इसका उपयोग न करे।

लेकिन आखिर इमरान खान के उपयोग पर रोक क्यों न लगाई जाए कुछ राजनेता पूछ लिए तब इटली के समझदार प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का होना न होना बराबर है!

मगर मोदीजी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस टीके को लगाए जाने का विरोध किया, सब ने कहा कि मोदीजी आपकी तो जाति दुश्मनी है आप क्यों मना कर रहे हैं? मोदी जी ने कहा कि मेरी किसी पाकिस्तानी से दुश्मनी नही है मेरी तो पाकिस्तानियत से दुश्मनी है लेकिन चीन का कतई भरोसा नहीं वह फिर कोई कोरोना का भाई रोरोना वायरस भेज कर पाकिस्तान में इंजेक्ट कर देगा तो भारत और इरान सबसे निकट पड़ोसी मुफ्त में निपट जाने का खतरा सबसे पहले हम पर ही होगा, इसलिए कृपा करके वहाँ भी प्रयोग न करे।

चूंकि भारतीय कम्युनिस्टों को पता था ही, इसलिए उन्होंने चीन पर अगाध निष्ठा और विश्वास जताते हुए अपने किसी युवा का नाम भेजा है! जिसे उस टीके की सबसे पहले जरूरत है, जिस युवा पर भारतीय कम्युनिस्टों की आशा टिकी हुई है! मैंने खूब खोजबीन की लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट उस युवा का नाम चीन भेजे जाने की सूची को पार्टी हित में जारी नही कर रहे थे और इसी हलचल में मेरा सपना टूट गया।