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Monday 29 December 2014

पेशावर का दर्द

जब भी मैं पेशावर से बेसलान की दूरी
नापने की कोशिश करता हूँ
फर्लांग और मीलों में/
वह अपने आप 'कन्वर्ट' हो जाती है
महिनों और वर्षों में/
मेरी हर कोशिश नाकाम साबित होती है।
मैं भूगोल नापना चाहता हूँ
और इतिहास नप जाता है/
इतिहास की एक
हरामी ज़िद
अपनी ज़द में घेर लेती है
समूचा युग!
इस ज़द की बढ़ती कालिख
वर्तमान को लील जाती है,
किसी खामोश अजगर की तरह/
मालूम पड़ता है तब
जब
अजगर
निगल चुका होने के बाद
मरे हुए समय को पचाने के लिये
तड़ तड़ चटकाता है हड्डियाँ /
पेशावर और बेसलान की तरह।