घुमड़ते घने काले बादलों
और बरसती
फुहार के गीत
उमगती धरती और बिजली की कौ़ध
पर गीत लिख सकता हूं।
लिख सकता हूं
लरजती भीगती तरूणी के देहबंद
पर
फिर याद आता है
बादलों के गर्जन और बिजली की चकाचौंध से
भयग्रस्त झोपड़ी के दीमक लगे
जर्जर खम्भों को कौन लिखेगा?
उड़ चुकी छपरैल से टपकता आसमान
कौन लिखेगा?
कौन लिखेगा डर से
जब्त रात के बाद
उगते सूरज का स्वागत
मुझे सूरज के ताप से पिघले
काले स्याह चेहरों का
दर्द भी लिखना है,
और लिखना है सूरज की प्रतीक्षा भी।
4/7/16
मन के भाव शब्दों में ढलकर जब काव्य रूप में परिणित होकर लेखन की भूमि पर बोये जाते है, तो अंकुरित हरितिमा सबको मुकुलित करती है! स्वागत है आपका इस काव्य भूमि पर.....।